वो भी क्या दिन थे...

वो भी क्या दिन थे...
मम्मी कि गोद और पापा के कंधे...
न पैसे की सोच न लाइफ के फंडे...
न कल की चिंता न फ्यूचर के सपने...
और अब कल की फ़िक्र और अधूरे सपने...
मुड़कर देखा तो बहुत दूर हैं अपने...
मंज़िलों को ढूंढते हम कहाँ खो गए...
न जाने क्यों हम इतने बड़े हो गए... 


Aseem Jha

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