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ऊपर वाले ने अपनी मोहब्बत के सदके में हम सबके लिए ये धरती बनाई थी
पर मोहब्बत के दुश्मनों ने इस पर लकीरें खींच कर सरहदें बना दी
मैं जानता हूँ वो लोग तुम्हे इस पार नहीं आने देंगे
मगर ये पवन जो तुम्हारे यहाँ से हो कर आई है
तुम्हे छू कर आई होगी
मैं इसे सांस बना कर अपने सीने में भर लूँगा
ये नदिया जिस पर झुक कर तुम पानी पिया करते हो
मैं इसके पानी से अपने प्यासे होठों को भिगो लूंगी
समझूंगी तुम्हारे होठों को छू लिया...
पंछी नदिया पवन के झोंके कोई सरहद न इन्हें रोके
सरहदें इंसानों के लिए हैं, सोचो तुमने और मैंने क्या पाया इन्सां हो के...
-जावेद अख्तर
पर मोहब्बत के दुश्मनों ने इस पर लकीरें खींच कर सरहदें बना दी
मैं जानता हूँ वो लोग तुम्हे इस पार नहीं आने देंगे
मगर ये पवन जो तुम्हारे यहाँ से हो कर आई है
तुम्हे छू कर आई होगी
मैं इसे सांस बना कर अपने सीने में भर लूँगा
ये नदिया जिस पर झुक कर तुम पानी पिया करते हो
मैं इसके पानी से अपने प्यासे होठों को भिगो लूंगी
समझूंगी तुम्हारे होठों को छू लिया...
पंछी नदिया पवन के झोंके कोई सरहद न इन्हें रोके
सरहदें इंसानों के लिए हैं, सोचो तुमने और मैंने क्या पाया इन्सां हो के...
-जावेद अख्तर
रहिये अब ऐसी जगह चलकर जहाँ कोई न हो
हमसुख़न कोई न हो और हमज़बाँ कोई न हो,
बेदर-ओ-दीवार सा इक घर बनाया चाहिये
कोई हमसाया न हो और पासबाँ कोई न हो,
पड़िये गर बीमार तो कोई न हो तीमारदार
और अगर मर जाईये तो नौहाख़्वाँ कोई न हो,
-मिर्ज़ा ग़ालिब
*(हमसुख़न = हमदर्द, हमज़बाँ = अपनी भाषा जानने वाला, हमसाया = साथी,
पासबाँ = हिफाज़त करने वाला, तीमारदार = बीमार की सेवा करने वाला,
नौहाख़्वाँ = मौत पर रोने वाला)
हमसुख़न कोई न हो और हमज़बाँ कोई न हो,
बेदर-ओ-दीवार सा इक घर बनाया चाहिये
कोई हमसाया न हो और पासबाँ कोई न हो,
पड़िये गर बीमार तो कोई न हो तीमारदार
और अगर मर जाईये तो नौहाख़्वाँ कोई न हो,
-मिर्ज़ा ग़ालिब
*(हमसुख़न = हमदर्द, हमज़बाँ = अपनी भाषा जानने वाला, हमसाया = साथी,
पासबाँ = हिफाज़त करने वाला, तीमारदार = बीमार की सेवा करने वाला,
नौहाख़्वाँ = मौत पर रोने वाला)
माँ...
कब्र के आगोश में जब थक के सो जाती है माँ,
तब कहीं जा कर, ज़रा थोड़ा सुकूँ पाती है माँ।
फिक्र में बच्चों की कुछ ऐसी घुल जाती है माँ,
नौजवाँ हो कर के भी, बूढ़ी नज़र आती है माँ।
तब कहीं जा कर, ज़रा थोड़ा सुकूँ पाती है माँ।
फिक्र में बच्चों की कुछ ऐसी घुल जाती है माँ,
नौजवाँ हो कर के भी, बूढ़ी नज़र आती है माँ।
रूह के रिश्तों की ये गहराइयाँ तो देखिये,
चोट लगती है हमारे और चिल्लाती है माँ।
कब ज़रूरत हो मेरी बच्चों को इतना सोच कर,
जागती रहती हैं आँखें और सो जाती है माँ।
चाहे हम खुशियों में माँ को भूल जायें दोस्तों,
जब मुसीबत सर पे आ जाए, तो याद आती है माँ।
लौट कर सफर से वापस जब कभी आते हैं हम,
डाल कर बाहें गले में सर को सहलाती है माँ।
हो नही सकता कभी एहसान है उसका अदा,
मरते मरते भी दुआ जीने की दे जाती है माँ।
मरते दम बच्चा अगर आ पाये न परदेस से,
अपनी दोनो पुतलियाँ चौखट पे धर जाती है माँ।
प्यार कहते है किसे और ममता क्या चीज है,
ये तो उन बच्चों से पूँछो, जिनकी मर जाती है माँ।
चोट लगती है हमारे और चिल्लाती है माँ।
कब ज़रूरत हो मेरी बच्चों को इतना सोच कर,
जागती रहती हैं आँखें और सो जाती है माँ।
चाहे हम खुशियों में माँ को भूल जायें दोस्तों,
जब मुसीबत सर पे आ जाए, तो याद आती है माँ।
लौट कर सफर से वापस जब कभी आते हैं हम,
डाल कर बाहें गले में सर को सहलाती है माँ।
हो नही सकता कभी एहसान है उसका अदा,
मरते मरते भी दुआ जीने की दे जाती है माँ।
मरते दम बच्चा अगर आ पाये न परदेस से,
अपनी दोनो पुतलियाँ चौखट पे धर जाती है माँ।
प्यार कहते है किसे और ममता क्या चीज है,
ये तो उन बच्चों से पूँछो, जिनकी मर जाती है माँ।
हम दिल-ए-मायूस को समझा बुझा कर रह गए
ज़िन्दगी के हर कदम पर मात खा कर रह गए
कौन सी नाकामियों का बोझ था दिल पर जो हम
खुल के हँसना था जहां बस मुस्कुरा कर रह गए
जो हमारी ज़िन्दगी के ख्वाब की ताबीर थे
वो फ़क़त दो चार दिन ख्वाबों में आ कर रह गए
प्यास बुझनी थी जहां अपनी छलकते जाम से
हम वहां दो चार कतरों से बुझा कर रह गए
जब किसी के संग-ए-दिल पे चोट करनी थी हमें
हम वहाँ भी दिल पे अपने चोट खा कर रह गए...
बहुत अरसा तो नहीं गुजरा,
न ही इतिहास का कोई ग्रन्थ ख़त्म हुआ है
मुझे अब भी याद है कि अक्सर,
हर राह पर...
वो तुम्हारा, मेरे हाथ को पकड़कर चलना
उन खूबसूरत झिलमिल आँखों का,
मैं स्वाभिमान था...
और वो मीठे ख्यालों में बुने किस्से...
मुझे अब भी याद हैं...
उन खूबसूरत झिलमिल आँखों का,
मैं स्वाभिमान था...
और वो मीठे ख्यालों में बुने किस्से...
मुझे अब भी याद हैं...
आज अरसो बाद भी,
तुम्हारी उँगलियों का स्नेह और स्पर्श
मुझमे शेष है...।
तुम खो नहीं सकते भीड़ और तन्हाई में,
मेरी उँगलियाँ तुमको खोज लेंगी...
वो जो हम में तुम में करार था तुम्हें याद हो के न याद हो
वही यानी वादा निबाह का तुम्हें याद हो के न याद हो
वही यानी वादा निबाह का तुम्हें याद हो के न याद हो
वो नए गिले वो शिकायतें वोह मज़े मज़े की हिकायतें
वो हर एक बात पे रूठना तुम्हें याद हो के न याद हो
कोई बात ऎसी अगर हुई जो तुम्हारे जी को बुरी लगी
तो बयान से पहले ही भूलना तुम्हें याद हो के न याद हो
सुनो ज़िक्र है कई साल का, कोई वादा मुझ से था आप का
वो निबाहने का तो ज़िक्र क्या, तुम्हें याद हो के न याद हो
कभी हम में तुम में भी चाह थी, कभी हम से तुम से भी राह थी
कभी हम भी तुम भी थे आशना, तुम्हें याद हो के न याद हो
वो जो लुत्फ़ मुझ पे थे बेशतर, वो करम के हाथ मेरे हाथ पर
मुझे सब हैं याद ज़रा ज़रा, तुम्हें याद नो की न याद हो
जिसे आप गिनते थे आशना जिसे आप कहते थे बावफा
मैं वही हूँ मोमिन-ऐ-मुब्तला तुम्हें याद हो के न याद हो
वो हर एक बात पे रूठना तुम्हें याद हो के न याद हो
कोई बात ऎसी अगर हुई जो तुम्हारे जी को बुरी लगी
तो बयान से पहले ही भूलना तुम्हें याद हो के न याद हो
सुनो ज़िक्र है कई साल का, कोई वादा मुझ से था आप का
वो निबाहने का तो ज़िक्र क्या, तुम्हें याद हो के न याद हो
कभी हम में तुम में भी चाह थी, कभी हम से तुम से भी राह थी
कभी हम भी तुम भी थे आशना, तुम्हें याद हो के न याद हो
वो जो लुत्फ़ मुझ पे थे बेशतर, वो करम के हाथ मेरे हाथ पर
मुझे सब हैं याद ज़रा ज़रा, तुम्हें याद नो की न याद हो
जिसे आप गिनते थे आशना जिसे आप कहते थे बावफा
मैं वही हूँ मोमिन-ऐ-मुब्तला तुम्हें याद हो के न याद हो
-मोमिन खां 'मोमिन '
कुछ साये कुछ परछाईयाँ
कुछ चाहत के सजदे
कुछ चाहत के सजदे
कुछ बहते बादलों में रखी उम्मीदें
बरसती रहीं तरसती रहीं
चाँद आसमान में जड़े सुराख की तरह झांकता रहा
और रात किसी अंधे कुँए की तरह मुह खोले हांफती रही
रास्ते पाँव तले से निकलते रहे
न रुके न थामे
न रोक न पूछा
ज़िंदगी किस तलाश में है
ज़िंदगी थकने लगी है
और ये ज़िंदगी का जुड़वाँ उसकी उँगली पकड़े
शहर की नंगी सड़कों पर
अभी तक कुछ बीन रहा है कुछ ढूंढ रहा है
गुलज़ार.
अब बुलाऊँ भी तुम्हे तो तुम न आना !
टूट जाए शीघ्र जिससे आस मेरी
छूट जाए शीघ्र जिससे साँस मेरी,
इसलिए यदि तुम कभी आओ इधर तो,
द्वार तक आकर हमारे लौट जाना !
देख लूँ मै भी की तुम कितने निष्ठुर हो,
किस कदर इन आंसुओ से बेखबर हो,
इसलिए जब सामने आकर तुम्हारे,
मै बहाऊँ अश्रु तो तुम मुस्कुराना !
जान लूँ मै भी कि तुम कैसे शिकारी,
चोट कैसी तीर कि होती तुम्हारी,
इसलिए घायल ह्रदय लेकर खड़ा हूँ
लो लगाओ साधकर अपना निशाना !
एक भी अरमान न रह जाए मन में,
और, न मचले कोई आंसू नयन में,
इसलिए जब मैं मरूं तब तुम घृणा से,
एक ठोकर लाश पर मेरी लगाना !
- गोपालदास नीरज
टूट जाए शीघ्र जिससे आस मेरी
छूट जाए शीघ्र जिससे साँस मेरी,
इसलिए यदि तुम कभी आओ इधर तो,
द्वार तक आकर हमारे लौट जाना !
देख लूँ मै भी की तुम कितने निष्ठुर हो,
किस कदर इन आंसुओ से बेखबर हो,
इसलिए जब सामने आकर तुम्हारे,
मै बहाऊँ अश्रु तो तुम मुस्कुराना !
जान लूँ मै भी कि तुम कैसे शिकारी,
चोट कैसी तीर कि होती तुम्हारी,
इसलिए घायल ह्रदय लेकर खड़ा हूँ
लो लगाओ साधकर अपना निशाना !
एक भी अरमान न रह जाए मन में,
और, न मचले कोई आंसू नयन में,
इसलिए जब मैं मरूं तब तुम घृणा से,
एक ठोकर लाश पर मेरी लगाना !
- गोपालदास नीरज
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Friendship isn't about whom you have known the longest... It's about who came, and never left your side.
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Both optimists and pessimists contribute to society. The optimist invents the aeroplane, the pessimist the parachute.
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